કોઈ નઝમ ૬૦
जहाँ यार याद न आए
वो तन्हाई किस काम की,
बिगड़े रिश्ते न बने तो
खुदाई किस काम की,
बेशक अपनी मंज़िल तक जाना है ,
पर जहाँ से अपना दोस्त ना दिखे
वो ऊंचाई किस काम की!!!
जहाँ यार याद न आए
वो तन्हाई किस काम की,
बिगड़े रिश्ते न बने तो
खुदाई किस काम की,
बेशक अपनी मंज़िल तक जाना है ,
पर जहाँ से अपना दोस्त ना दिखे
वो ऊंचाई किस काम की!!!
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