કોઈ નઝમ ૧૪
एक दिन एक बंदे और खुदा के बीच बहस हो गयी
खुदाने कहा:
गुज़र चुकी है जो जिंदगी,
उसे तू याद ना कर।
तक़दीर मे जो लिखा है,
उसकी फ़रियाद ना कर।
जो होगा वोह होकर रहेगा,
कल की फिक्र मे ,
तु आज की ख़ुशी
युहीं बर्बाद ना कर।
बंदेने भी कह दिया:
लेने दे मज़ा इंतज़ार का
अगले जनम मे तो मिलना मुमकिन है।
फिर खुदा ने कहा:
मत कर इतना प्यार ,
बहुत पछताएगा।
मुस्कुरा कर बंदेने कहा:
देखते है कितना तू
मेरी रूह को तड़पायेगा।
फिर खुदा ने कहा :
भूल जा उसे,
तुजे जन्नत की हूर से मिलाता हु ।
बंदा बोला
एक बार मिल मेरे प्यार से,
तुझे उस जन्नत की अप्सरा भुलाता हु।
तिलमिला के खुदा ने कहा आखरी बार:
मत भूल अपनी औकात,
तू तो फिर भी एक बेबस इंसान है।
ख़ुशी के मारे बंदेने कहा :
तो मिला मुझे मेरे यार से,
और मान लू तू ही मेरा पर्वर्दिगाह है।
उस बंदेकी यह बहस बंदगी मे कुबूल हुई।
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